पृथ्वी के ललाट पर एक मुकुट की तरह उड़े जा रहे थे पक्षी मैंने दूर से देखा और मैं वहीं से चिल्लाया बधाई हो पृथ्वी, बधाई हो !
हिंदी समय में केदारनाथ सिंह की रचनाएँ